नेपाल ने भारत को ये चीज देना किया बंद तभी आया संकट? पुरी जगन्नाथ मंदिर के सेवक का दावा

ओडिशा के पुरी के प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर के कुछ सेवकों ने नेपाल में चल रही अशांति को मंदिर के लिए कस्तूरी की आपूर्ति बंद होने से जोड़ा है. उनका कहना है कि यह कस्तूरी मंदिर के अनुष्ठानों के लिए जरूरी है, जो पहले नेपाल से आती थी. सेवकों के मुताबिक, नेपाल से कस्तूरी न मिलने से मंदिर की परंपराएं और धार्मिक अनुष्ठान प्रभावित हो रहे हैं. सेवकों ने बताया कि प्राकृतिक कस्तूरी का इस्तेमाल मंदिर के दैनिक और खास अनुष्ठानों में होता है. खासतौर पर ‘बनक लागी’ नाम के गुप्त अनुष्ठान में इसका उपयोग होता है, जिसमें देवताओं को सजाया जाता है.
साथ ही, यह कस्तूरी नीम की लकड़ी से बनी मूर्तियों को कीड़ों से बचाने और भगवान जगन्नाथ के चेहरे की सुंदरता बढ़ाने में भी मदद करता है. चुनारा सेवक डॉ. शरत मोहंती ने कहा, ‘कस्तूरी कैलाश क्षेत्र में मानसरोवर झील के पास पाए जाने वाले कस्तूरी मृग से मिलती है. पहले नेपाल के राजा इसे नियमित रूप से पुरी भेजते थे, क्योंकि उनके और जगन्नाथ मंदिर के बीच गहरा आध्यात्मिक रिश्ता था.’ उन्होंने बताया कि नेपाल के राजाओं को पुरी आने पर रत्न सिंहासन पर भगवान जगन्नाथ की पूजा करने का विशेष अधिकार मिलता था. सेवकों का कहना है कि पिछले कुछ दशकों में वन्यजीव संरक्षण कानूनों के कारण नेपाल ने कस्तूरी की आपूर्ति बंद कर दी है. इससे मंदिर के अनुष्ठान प्रभावित हुए हैं.
